विश्व के अलग अलग भागों में जनसंख्या और संसाधनों के वितरण में अत्यधिक विषमता देखने को मिलती है। कहीं पर संसाधनों की बहुलता है तो कहीं इनका अभाव है। इसी प्रकार कहीं पर प्रौद्योगिकी के विकास से वहाँ के संसाधनों विकास सम्भव हुआ है जबकि कई प्रदेशों में पर्याप्त संसाधन होते हुए भी प्रौद्योगिकी के पिछड़ेपन के कारण उनका विदोहन नहीं हो पा रहा है।
इसी प्रकार की असमानता जनसंख्या के वितरण में भी देखने को मिलती है। जहाँ एक ओर मानसून एशिया, पश्चिमी यूरोपीय क्षेत्र तथा उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तटीय भाग सघन जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं, वहीं दूसरी ओर सहारा, कालाहारी, अरब, थार, गोबी, मंगोलिया, अटाकामा और पश्चिमी आस्ट्रेलिया के मरुस्थलीय क्षेत्र तथा अंटार्कटिका, ग्रीन लैंड, उत्तरी कनाडा और उत्तरी साइबेरिया के शीतल भाग लगभग निर्जन हैं। मध्य अफ्रीका के घने जंगलो भाग भी लगभग निर्जन ही हैं।
इस प्रकार जनसंख्या और संसाधन के सम्बन्धों से उत्पन्न प्रतिरूपों में भी असमानता का पाया जाना स्वाभाविक ही है। संसाधनों की सही परिभाषा, मापदण्ड तथा उनके माप की कठिनाइयों के कारण जनसंख्या-संसाधन प्रदेशों का निर्धारण करना आसान नहीं है। सम्भवतः यही कारण है कि विश्व के जनसंख्या-संसाधन प्रदेशों के विभाजन तथा उनके अध्ययन सम्बन्धी कार्य बहुत कम हुए हैं।
(1) संयुक्त राज्य तुल्य प्रदेश (United States Type Regions)
इस प्रकर के प्रदेश जनसंख्या-संसाधन से सर्वाधिक विकसित और सर्वोत्तम स्थिति में हैं। ऐसे प्रदेशों में संभव और ज्ञात दोनों प्रकार के संसाधनों की विशाल राशि है और प्रौद्योगिकी अत्यन्त विकसित अवस्था में है। यहाँ जनसंख्या का आकार विकसित संसाधनों की तुलना में कम है जिसके परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति आय तथा राष्ट्रीय एवं मानवजीवन स्तर अति उच्च है। इसके अन्तर्गत संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, अस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, मध्य एवं पूर्वी रूस (नवीन बसाये गये क्षेत्र) सम्मिलित है। कुछ लोग अर्जेन्टीना और यूरुग्वे को भी इसी श्रेणी के निकट मानते हैं किन्तु इनकी स्थिति बहुत स्पष्ट नहीं है।
केवल रूस को छोड़कर इस वर्ग के अन्य देशों में यूरोप आए प्रवासियों का ही प्रभुत्व है और इन प्रदेशों के भौतिक, आर्थिक एवं सामाजिक विकास का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। 18वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक यूरोप महाद्वीप के विभिन्न देशों से बड़ी संख्या में जनसंख्या का प्रवास उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका और आस्ट्रेलिया के लिए हुआ जहाँ विस्तृत भूमि और उपयोग के लिए विशाल संसाधन राशि उपलब्ध थी। यूरोपीय जन-प्रवास के साथ ही यूरोप में विकसित वैज्ञानिक ज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पूँजी का भी स्थानांतरण इन प्रदेशों में हुआ जिसके परिणामस्वरूप यहाँ उपलब्ध विस्तृत भूमियों पर उन्नत ढंग से कृषि की जाने लगी और वहाँ प्राप्त खनिज भंडारों का तीव्र गति से विदोहन प्रारम्भ हुआ जिसके परिणामस्वरूप नये-नये उद्योग-धंधे स्थापित होते गये।
(2) यूरोप तुल्य प्रदेश (European Type Regions)
इस प्रकार के प्रदेश प्रौद्योगिकीय विकास की दृष्टि से उन्नत हैं और यहाँ उपलब्ध संसाधनों का लगभग पूर्ण विकास हो चुका है किन्तु जनसंख्या अधिक होने के कारण जनसंख्या-संसाधन अनुपात उच्च है। इस प्रकार के प्रदेशों में संयुक्त राज्य तुल्य प्रदेशों की तुलना में प्रति व्यक्ति आय कम और जीवन स्तर नीचा है। इसके अन्तर्गत वे प्रदेश सम्मिलित है जो आधुनिक विकास की श्रृंखला में अग्रणी रह चुके हैं किन्तु जनसंख्या- संसाधन अनुपात उच्च होने के कारण यहाँ उच्च जीवन स्तर बनाये रखना चुनौती बन गया है।
सीमित संसाधनों से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से संसाधनों का संरक्षण तथा जनसंख्या नियमन की समस्या इन प्रदेशों की प्रमुख समस्या बन गयी है। यद्यपि आधुनिक प्राविधिकी विकास का आरम्भ सर्वप्रथम इन्हीं प्रदेशों से हुआ है किन्तु जनसंख्या की अधिकता तथा संसाधनों की सीमितता के कारण आर्थिक विकास की दौड़ में ये प्रदेश अब संयुक्त राज्य तुल्य प्रदेशों के बाद द्वितीय श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं।
यूरोप तुल्य प्रदेश के अन्तर्गत पश्चिमी यूरोपीय देश, दक्षिण यूरोप के कुछ देश तथा एशिया का जापान देश सम्मिलित है। इस प्रकार ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, स्वीडेन, फिनलैंड, इटली, तथा जापान इस वर्ग के अन्तर्गत आने वाले प्रमुख देश हैं जिनकी गणना विकसित राष्ट्रों में होती है। इन देशों में मृत्युदर और जन्मदर दोनों के अत्यन्त निम्न होने के कारण कई दशकों से जनसंख्या अति मन्द गति से बढ़ रही है अथवा लगभग स्थिर है।
(3) मित्र या चीन तुल्य प्रदेश (Egyptian or Chinese Type Regions)
इस श्रेणी के प्रदेशों को मिस्र तुल्य या चीन तुल्य प्रदेश कहा जाता है। इन प्रदेशों में संसाधनों की तुलना में जनसंख्या अधिक होने से जनसंख्या-संसाधन अनुपात उच्च है किन्तु प्रौद्योगिकी अभी अल्पविकसित या पछिड़ी अवस्था में है। इसके अन्तर्गत आने वाले सभी देश कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था वाले हैं और अधिकांश जनसंख्या कृषि आदि प्राथमिक कार्यों से जीविका प्राप्त करती है। लगभग तीन-चौथाई या इससे अधिक जनसंख्य गाँवों में निवास करती है।
जनसंख्या -संसाधन सम्बन्ध की दृष्टि से मिस्र तुल्य प्रदेश मुख्य रूप से एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिणी यूरोप में स्थित हैं। पूर्वी एशिया में चीन एवं कोरिया, दक्षिण एशिया में भारत, पाकिस्तान, बांगलादेश, श्रीलंका और नेपाल, दक्षिण-पश्चिम एशिया में अफगानिस्तान, टर्की, लेबनान, साइप्रस आदि; लैटिन अमेरिका में पीरू, कोलम्बिया, हैटी, ग्वाटेमाला तथा एलसल्वाडोर; दक्षिणी यूरोप में सिसलो, यूनान, यूगोस्लाविया, अलवानिया आदि और अफ्रीका में मिस्र, अल्जीरिया, मोरक्को और ट्यूनीशिया आदि देश इसी श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं। सम्भावना है निकट भविष्य में चीन और भारत की गणना यूरोप तुल्य प्रदेशों की श्रेणी में होने लगेगी।
(4) ब्राजील तुल्य प्रदेश (Brazilian Type Regions)
इस वर्ग के अन्तर्गत ऐसे प्रदेश सम्मिलित हैं जो प्रौद्योगिकी की दृष्टि से पिछड़े हुए हैं और जनसंख्या-संसाधन अनुपात निम्न है अर्थात् ज्ञात संसाधनों की तुलना में जनसंख्या कम है। ऐसे प्रदेशों में अधिक क्षेत्रीय विस्तार के साथ ही संभाव्य संसाधनों की प्रचुरता है किन्तु ये विभिन्न भौगोलिक, आर्थिक एवं राजनीतिक अवरोधों के कारण अल्प विकसित हैं।
भविष्य में उन्नत प्राविधिकी के प्रयोग होने पर यहाँ मानव उपयोग के लिए अधिकाधिक संसाधन प्राप्त होने की प्रबल संभावनाएँ हैं। इन संसाधनों के विकसित होने पर ये प्रदेश और अधिक जनसंख्या के पोषण में समर्थ होंगे जिससे मनुष्य के जीवन-स्तर में उत्थान होगा और सुख-समृद्धि में वृद्धि होगी।
(5) आर्कटिक मरुस्थल तुल्य प्रदेश (Arctic Desert Type Regions)
इसके अन्तर्गत अधिक विस्तार वाले शीत मरुस्थल और उष्ण मरुस्थल शामिल हैं जो अत्यधिक शीत अथवा शुष्कता के कारण वनस्पति विहीन और लगभग या पूर्णतः जनविहीन प्रदेश हैं। अत्यधिक निम्न तापमान रहने के कारण ये प्रदेश सम्पूर्ण वर्ष भर अथवा वर्ष के अधिकांश महीनों में हिमाच्छादित रहते हैं और मिट्टी के विकास के अभाव में यहाँ वनस्पतियों का विकास नहीं हो पाता है।
यहाँ प्राकृतिक प्रतिकूलता के कारण खाद्य उत्पादन के साधनों का लगभग अभाव है और ये प्रदेश प्रौद्योगिकीय विकास की दृष्टि से तो सर्वाधिक पिछड़े हुए हैं। यहाँ समुद्र तथा समुद्री जीवों से सम्बद्ध संसाधनों, जलशक्ति, कुछ प्रमुख खनिज पदार्थों तथा पेट्रोलियम के भंडार विद्यमान हैं। भविष्य में प्रौद्योगिकी के विकास होने पर इन अदृश्य संसाधनों के उपयोग के मार्ग प्रशस्त हो सकते हैं जिससे इन प्रदेशों के आर्थिक महत्व बढ़ने की प्रबल सम्भावनाएँ हैं।