देश के साथ छत्तीसगढ़ में भी नई कानून व्यवस्था लागू की गई है। अंग्रेजों के जमाने से चल रहे कानूनों की जगह 3 नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1 जुलाई सोमवार को लागू हुए। इससे जुड़ी बुक को CM हाउस में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने लॉन्च किया।
नए कानूनों को इन्हें IPC (1860), CrPC (1973) और एविडेंस एक्ट (1872) की जगह लाया गया है। नए कानून के मुताबिक धाेखेबाज प्रेमियों को 10 साल की सजा मिलेगी।
पुलिस विभाग के सभी बड़े अफसरों ने नए कानूनों के बारे में मुख्यमंत्री को बताया।
पुलिस विभाग के सभी बड़े अफसरों ने नए कानूनों के बारे में मुख्यमंत्री को बताया।
नए कानूनों को समझना आसान होगा
मुख्यमंत्री ने बुक लॉन्च करते हुए कहा कि 3 नए आपराधिक कानूनों को लेकर महत्वपूर्ण जानकारियों का संग्रह है, इस किताब में है। छत्तीसगढ़ पुलिस की इस विशेष पहल से नए कानूनों को समझना आसान होगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि अंग्रेजों के बनाए “दंड विधानों” से हम “न्याय विधानों” की ओर उन्मुख हो चुके हैं। जहां भारतीय दंड संहिता, 1860 के स्थान पर भारतीय न्याय संहिता, 2023, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के स्थान पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के स्थान पर भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 को नए सिरे से नए कलेवर में प्रस्तुत किया गया है।
CM साय ने कहा कि जैसा कि कहा जाता है कि न्याय मिलने में देरी, न्याय ना मिलने के समान है। इस बात को ध्यान में रखते हुए नए कानूनों की प्रक्रिया में आवश्यकतानुसार व्यापक परिवर्तन किया गया है, जिससे पीड़ितों को त्वरित न्याय दिलाया जा सके। ऐसा करने से न्याय प्रणाली में आम जनता का विश्वास और मजबूत होगा।
पुलिस अधिकारियों और विवेचकों के लिए ये किताब अहम है। इससे क्राइम केस की जांच में मदद मिलेगी। मुख्यमंत्री के अलावा इस मौके पर अपर मुख्य सचिव गृह विभाग मनोज पिंगुआ, डीजीपी अशोक जुनेजा, मुख्यमंत्री के सचिव राहुल भगत और बसव राजू एस मौजूद रहे।
बदल गई यह धाराएं
अपराध IPC BNS
हत्या 302 101
हत्या का प्रयास 307 109
दुष्कर्म 376 63
जालसाजी 420 316
क्या बदला है समझिए
दरअसल, भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1 जुलाई से देशभर में लागू हो गए हैं। इन्हें तीन नए आपराधिक कानूनों के तौर पर जाना जा रहा है। इन कानूनों ने ब्रिटिश काल के भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह ली है।
भारतीय दंड संहिता 163 साल पुराना कानून था, जिसकी जगह अब BNS ने ले ली है। BNS में धोखाधड़ी से लेकर संगठित अपराध के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है।
भारतीय न्याय संहिता में क्या है खास ?
भारतीय न्याय संहिता यानी BNS में 358 सेक्शन हैं, जबकि IPC में 511 सेक्शन हुआ करते थे। इसमें 21 नए तरह के अपराधों को शामिल किया गया है। 41 अपराधों के लिए कारावास की सजा की अवधि को बढ़ाया गया है। 82 अपराधों में जुर्माने की राशि को भी बढ़ाया गया है।
BNS में 25 ऐसे अपराध हैं, जिसमें कम से कम सजा का प्रावधान किया गया है। नए कानून में 6 ऐसे अपराध हैं, जिनके लिए सामाजिक सेवा का दंड दिया जाएगा। जैसे नाली साफ करना भी, साथ ही अपराध के 19 सेक्शंस को हटा दिया गया है।
तो अब क्या बदलेगा
FIR, जांच और सुनवाई के लिए अनिवार्य समय-सीमा तय की गई है। अब सुनवाई के 45 दिनों के भीतर फ़ैसला देना होगा, शिकायत के तीन दिन के भीतर FIR दर्ज करनी होगी।
FIR अपराध और अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क सिस्टम (CCTNS) के माध्यम से दर्ज की जाएगी।
ये प्रोग्राम राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के तहत काम करता है। जीरो FIR किसी भी पुलिस स्टेशन में दर्ज हो सकेगी चाहे अपराध उस थाने के अधिकार क्षेत्र में आता हो या नहीं।
पहले केवल 15 दिन की पुलिस रिमांड दी जा सकती थी, लेकिन अब 60 या 90 दिन तक दी जा सकती है।
केस का ट्रायल शुरू होने से पहले इतनी लंबी पुलिस रिमांड को लेकर कई क़ानून के जानकार चिंता जता रहे हैं।
भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को ख़तरे में डालने वाली हरकतों को एक नए अपराध की श्रेणी में डाला गया है। तकनीकी रूप से राजद्रोह को आईपीसी से हटा दिया गया है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी रोक लगा दी थी, यह नया प्रावधान जोड़ा गया है।
आतंकवादी कृत्य, जो पहले गैर क़ानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम जैसे विशेष कानूनों का हिस्सा थे, इसे अब भारतीय न्याय संहिता में शामिल किया गया है।
इसी तरह, पॉकेटमारी जैसे छोटे संगठित अपराधों समेत संगठित अपराध में तीन साल की सज़ा का प्रवाधान है. इससे पहले राज्यों के पास इसे लेकर अलग-अलग क़ानून थे।
शादी का झूठा वादा करके सेक्स को विशेष रूप से अपराध के रूप में पेश किया गया है। इसके लिए 10 साल तक की सजा होगी।
व्यभिचार और धारा 377, जिसका इस्तेमाल समलैंगिक यौन संबंधों पर मुकदमा चलाने के लिए किया जाता था, इसे अब हटा दिया गया है।
जांच-पड़ताल में अब फोरेंसिक साक्ष्य जुटाने को अनिवार्य बनाया गया है।
सूचना प्रौद्योगिकी का अधिक उपयोग, जैसे खोज और बरामदगी की रिकॉर्डिंग, सभी पूछताछ और सुनवाई ऑनलाइन मोड में करना।
अब सिर्फ़ मौत की सजा पाए दोषी ही दया याचिका दाखिल कर सकते हैं। पहले NGO या सिविल सोसाइटी ग्रुप भी दोषियों की ओर से दया याचिका दायर कर देते थे।