रबींद्रनाथ टैगोर एक बहुत प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, जिनमें नई चीजें सीखने को लेकर ललक थी। उन्हें प्यार से घरवाले ‘रोबी’ कह कर बुलाते थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनि रबींद्रनाथ एक उपन्यासकार, कवि, दार्शनिक, चित्रकार, कथावाचक और नाटककार थे। साहित्य और संगीत में उनका योगदान अविस्मरणीय है। न केवल पश्चिम बंगाल में बल्कि पूरे भारत में लोग उन्हें एक श्रेष्ठ कला प्रेमी और कलाकार के रूप में याद करते हैं। यहां तक कि 1913 में भारतीय साहित्य में उनके महान योगदान के लिए उन्हें एशिया में पहली बार सबसे प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार दिया गया था। क्या आप जानते हैं कि वह यह पुरस्कार पाने वाले एशिया के पहले व्यक्ति थे। टैगोर ने भारत के राष्ट्रीय गान की रचना भी की थी।
- भारत का राष्ट्र-गान, ‘जन गण मन’, कवि और नाटककार रवींद्रनाथ टैगोर के लेखन से लिया गया है।
- भारत के राष्ट्र-गान की पंक्तियां रवींद्रनाथ टैगोर के गीत ‘भारतो भाग्यो बिधाता’ से ली गई हैं।
- मूल गाना बंगाली में लिखा गया था और पूरे गाने में 5 छंद हैं। यह पहली बार 1905 में तत्त्वबोधिनी पत्रिका के एक अंक में प्रकाशित हुआ था।
- इस गीत को सार्वजनिक रूप से पहली बार 27 दिसंबर, 1911 में कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र में गाया गया था – और टैगोर ने इसे खुद गाया था।
- टैगोर ने अपनी बंगाली गीत की एक अंग्रेज़ी व्याख्या 28 फरवरी, 1919 को लिखी, और इसका शीर्षक ‘द मॉर्निंग सॉन्ग ऑफ इंडिया’ रखा। अंग्रेज़ी व्याख्या लिखने का अनुरोध मदनपल्ली के बेसेंट थियोसोफ़िकल कॉलेज के डॉक्टर कोसेंस ने तब किया था जब टैगोर मदनपल्ली में कुछ दिन बिताने गए थे
- पूरे गाने की धीमी धुन और इसके राग अलहैया बिलावल का श्रेय रवींद्रनाथ को ही दिया गया है। रवींद्रनाथ के भतीजे के बेटे, दीनेंद्रनाथ टैगोर, जो खुद एक महान संगीतकार थे, ने शायद धुन बनाने में मदद की होगी।
- गाने की एक और सुरीली धुन, जर्मनी में हैम्बर्ग रेडियो सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा ने 1942 में बजाई थी।
- भारत के संविधान ने 24 जनवरी, 1950 (भारत के 26 वें गणतंत्र दिवस से पहले) को, टैगोर के “भारोत्तो भाग्यो बिधाता” के पहले श्लोक को आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय गान घोषित किया।
- सुभाष चंद्र बोस ने राष्ट्रगान चुनने में अहम भूमिका निभाई थी।
उन्होंने हिंदी और उर्दू शब्दों का इस्तेमाल करते हुए टैगोर के मूल गीत का दूसरा संस्करण बनाया, जिसे ‘शुभ सुख चैन’ का नाम दिया गया। - कलाकार मकबूल फ़िदा हुसैन ने राष्ट्रगान के “भारत भाग्य विधाता” शब्दों से प्रेरित एक बड़ी पेंटिंग बनाई थी।
- 45 फ़ीट का यह म्यूरल अभी भी मुंबई में टाटा फंडामेंटल इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च की एक दीवार पर बना है।
- कुछ श्रद्धांजलि के अवसरों पर, राष्ट्रगान की पहली और अंतिम पंक्तियां गाई जाती हैं।
- जन-गण-मन-अधिनायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता।
पंजाब-सिंध-गुजरात-मराठा
द्रविड़-उत्कल-बंग।
विंध्य-हिमाचल-यमुना-गंगा- उच्छल-जलधि-तरंग।
- तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मांगे,
गाहे तव जय-गाथा ।
जन-गण-मंगल-दायक जय हे
भारत भाग्य विधाता ।
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे ।
लेखिका: तज़ीन नाज़