सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को वर्शिप एक्ट के खिलाफ याचिका पर सुनवाई हुई। कोर्ट में इस कानून की वैधता को चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया, ज्ञानवापी और मथुरा मामले में यथा स्थिति को बदलने की कोशिश की जा रही है। जिसमें कोर्ट ने केंद्र को तीन महीने में जवाब दाखिल करने को कहा है। जो धार्मिक स्थानों की पहचान और चरित्र की रक्षा करता है ,जैसा कि वे स्वतंत्रता दिवस पर थे। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का कहना है कि सरकार को कानून के बारे में अपना मन बनाने के लिए “थोड़ा और समय” चाहिए।
क्या कहता है प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट-1991
1991 में लागू किया गया यह प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। यदि कोई इस एक्ट का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और तीन साल तक की जेल भी हो सकती है। यह कानून तत्कालीन कांग्रेस प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव सरकार 1991 में लेकर आई थी। यह कानून तब आया जब बाबरी मस्जिद और अयोध्या का मुद्दा बेहद गर्म था।